



मैं जो तेरी खुशियों का सागर था ,
आज तेरी दुखो का साखी हूँ।
तेरेआंसू मुझे क्या सीचेंगे,
मैं तो तेरे हांथों से निकलती रेत हूँ,
जो मेरी कद्र जानता है,
उसके साथ ही गलत हुआ है।
मैं कोई वैश्या थी क्या,
जिसकी धरोहर का हरबार सौदा हुआ है।
मैं उंच और नीच का भेद हूँ।
तुम्हारेअन्नदाता की खेद हू।
हाँ, मैं बंधा खेत हू
हाँ, मैं बंधा खेत हूँ।