Ek Parinda (Zindagi) – Sachin

Reflectionist Sachin (ITBM 2022-24)

लिख रहा हूँ कुछ पन्नो पर कुछ खाली रह गए हैं,

बाग कोई दिखता नहीं शहर में तो बस अब माली रह गए हैं !!

उड़ता परिंदा आसमां मे देखो आज कैसे पंखो का कत्ल कर रहा,

जिंदगी पीछे खींचती रही और मंजिले आगे कुछ यूं वो जिंदगी भर एक सफर पर रहा !!

निकला घर से तो मोह ने लुटा पर चलता रहा कुछ पाने की आस में,

बाहर आया तो जूझता रहा कुछ गैरों को अपना बनाने की तलाश में!!

उम्र छोटी मैं उसने हालातों की गहराई को देखा,

पैसा खरीद लेता है खुशीयाँ उसने  जीवन की इस सच्चाई को देखा !!

रोजमर्रा की जिंदगी से कामयाबी का मतलब जान रहा था वो,

दिन में सोता पाया खुदको पर रातों में अक्सर जाग रहा था वो !!

मुक्तलिफ़ हुआ ज़िम्मेदारियों की ज़ेर-बारी से वो,

सफर मुश्किल था इसलिए कभी उतर नहीं पाया इस सवारी से वो!!

महफिलों में फर्श से अर्श तक के उसके सफर की मिसाल दे रहे थे लोग,

पैरों  के छालों का सिर्फ उसे पता था पर उसकी उचाईयों की रकम का हिसाब कमाल दे रहे थे लोग!!

जवानी दम तोड़ रही थी पर मदहोशी कुछ कर गुजरने की अब भी बराबर जाग रही थी,

वो सहेज रहा था कुछ लम्हे पर कुछ यादें जिंदगी से आगे भाग रहीं थी !!

जवानी ढली तो पता लगा  के गलतफहमियों का शिकार वो कुछ इस कदर हुआ,

कुछ हसीं लम्हो को मंजिल मान अब वो परिंदा दर-बदर हुआ!!

कुछ मलाल रह गए  हैं सफर-ए-जिंदगी अभी भी तुझसे पर अब उन्हें भुलाने का मन करता है,

हर कोने से मुखातिब है वो दुनिया के पर अब जब सुकून की बात है तो अब घर लौट जाने को मन करता है!!

मंजिलों से मुँह मोड़कर अब वो परिंदा अब जिंदगी से भी कुफर पर रहा,

उड़ता परिंदा आसमां मे देखो आज कैसे पंखो का कत्ल कर रहा!!

जिंदगी पीछे खींचती रही और मंजिले आगे कुछ यूं वो जिंदगी भर एक सफर पर रहा !!!!